अनुज कुमार वर्मा
ब्यूरो –सिद्धि टुडे, उन्नाव
करौंदी गांव में तीन मजदूर मिट्टी में दबे, बाल-बाल बची जान, सवालों के घेरे में जिम्मेदार संस्था
उन्नाव जिले के अचलगंज थाना क्षेत्र के करौंदी गांव में जल जीवन मिशन के तहत चल रहे कार्य में गुरुवार को एक बड़ा हादसा होते-होते टल गया। भूमिगत पाइपलाइन डालने के लिए खुदाई के दौरान मिट्टी धंसने से तीन मजदूर — तिलकराम (36), जग्गा (33) और राजन — मलबे में दब गए। स्थानीय लोगों की सूझबूझ, पुलिस और जल विभाग की तत्परता से उनकी जान बच सकी, लेकिन यह हादसा प्रशासनिक लापरवाही की एक बड़ी मिसाल बनकर सामने आया।
हादसे का कारण — घोर लापरवाही!
हादसे के वक्त मजदूर गड्ढे में उतरकर वेल्डिंग का काम कर रहे थे। इसी दौरान गड्ढे के किनारे रखी मिट्टी अचानक धंस गई और तीनों मजदूर अंदर दब गए। मौके पर न तो कोई सुरक्षा उपाय थे, न ही बैरिकेडिंग या मिट्टी धंसने से रोकने की कोई व्यवस्था। ग्रामीणों का कहना है कि “मेगा संस्था” द्वारा किए जा रहे इस कार्य में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं।
गांव में मचा कोहराम, फिर रेस्क्यू ऑपरेशन
घटना के बाद गांव में चीख-पुकार मच गई। स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। अचलगंज पुलिस मौके पर पहुंची और जेसीबी मंगवाकर रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया गया। साथ ही जल विभाग के टीपीआई ऑफिस के ड्राइवर और कर्मचारियों ने भी मोर्चा संभाला और अपनी जान की परवाह किए बिना गड्ढे में दबे मजदूरों को बाहर निकालने में मदद की।
एंबुलेंस न आई, विभागीय गाड़ियों से पहुंचाया गया अस्पताल
सबसे चिंता की बात यह रही कि एंबुलेंस को फोन करने के बावजूद समय पर मदद नहीं मिली। मजबूरन जल विभाग के टीपीआई ऑफिस के ड्राइवर और अधिकारी अपनी गाड़ियों से तीनों घायलों को जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने बताया कि मजदूरों की हालत गंभीर लेकिन स्थिर है।
प्रशासन जागा, जांच शुरू
हादसे के बाद प्रशासन ने मौके का निरीक्षण किया और जांच के आदेश दे दिए गए हैं। कार्यदायी संस्था की भूमिका की समीक्षा की जा रही है और लापरवाही साबित होने पर कार्रवाई की बात भी कही जा रही है।
बड़ा सवाल — गरीब की जान की कीमत कौन चुकाएगा?
जल जीवन मिशन का उद्देश्य गांवों तक स्वच्छ जल पहुंचाना है, लेकिन जब इस योजना को लागू करने वाली संस्थाएं लापरवाह रवैया अपनाएं, तो मिशन के पीछे की सोच ही खोखली नजर आती है। मजदूरों की जान जोखिम में डालकर अगर कोई काम किया जाएगा, तो ऐसी योजनाओं का ‘जीवन’ भला कैसे सुरक्षित रह सकता है?
करौंदी गांव की यह घटना एक बार फिर ये सवाल खड़ा करती है कि क्या गरीब मजदूरों की जान की कोई कीमत नहीं? क्या योजनाएं सिर्फ कागज़ों पर चलेंगी और ज़मीन पर जानलेवा बनती रहेंगी?
जल जीवन मिशन जैसी महत्वाकांक्षी योजना, जो ग्रामीण भारत को स्वच्छ जल मुहैया कराने के लिए शुरू की गई थी, अगर इसी तरह लापरवाही की भेंट चढ़ती रही, तो इसकी साख भी मिट्टी में दब जाएगी। सिर्फ जांच बैठा देने से जवाबदेही तय नहीं होती, ज़रूरत है ठोस कार्रवाई की, जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
आज अगर ग्रामीणों और विभागीय कर्मचारियों ने समय रहते हिम्मत न दिखाई होती, तो तीन घरों के चिराग बुझ चुके होते। क्या अब प्रशासन, कार्यदायी संस्था और निगरानी एजेंसियां जागेंगी? या अगली खबर में किसी और गांव का नाम जुड़ जाएगा?