अनुज कुमार वर्मा
ब्यूरो –सिद्धि टुडे, उन्नाव
कभी मां के आंचल की छांव तले पलने वाला बेटा आज कहां है, यह किसी को नहीं मालूम। यह कहानी केवल एक परिवार की नहीं बल्कि उस दर्द की गवाही है, जो हर उस मां-बाप के दिल में उतरती है, जिनका बच्चा अचानक लापता हो जाता है।
जनपद उन्नाव के थाना अजगैन क्षेत्र, ग्राम उधवा खेड़ा मजरा धोपा जमुरिया निवासी श्रीरामप्रकाश शुक्ला का परिवार आज टूट चुका है। पिता की आंखों में बेटे को खोज पाने की मजबूरी और असहायता है, तो मां के दिल में वह तड़प है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। 15 वर्षीय अभय उमेश शुक्ला, जो क्लास 8 में गुरुकुल पाठशाला गंगोत्री बिधनू रोड, कानपुर नगर में पढ़ता था, बीते दिनों अचानक गायब हो गया।
21 सितंबर की सुबह जब पिता ने बेटे की जानकारी लेने का प्रयास किया, तो खबर मिली कि अभय स्कूल से अचानक कहीं चला गया। समय था सुबह करीब 8:17, और इसके बाद शाम 5:30 बजे तक उसकी कोई खबर नहीं मिली। सबसे बड़ा दर्द यह है कि न तो स्कूल प्रशासन ने कोई स्पष्ट जानकारी दी और न ही बेटे का कोई ठिकाना मिल पाया।
मां की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। वह कहती हैं—“बेटे को गुरुकुल में इसलिए भेजा था कि उसका भविष्य उज्जवल हो, वह पढ़-लिखकर जीवन में कुछ बड़ा करे। लेकिन आज वही गुरुकुल मेरे बेटे की गुमनामी की वजह बन गया। उसका हालचाल कैसा है, क्या वह ठीक है, क्या उसने खाना खाया होगा या नहीं—इन सवालों ने मेरी आत्मा को छलनी कर दिया है।”
पिता श्रीरामप्रकाश शुक्ला का दर्द भी कम नहीं। दिन-रात चिंता ने उनकी जिंदगी की रफ्तार रोक दी है। वह कहते हैं—“मैं रोज बेटे की याद में टूट रहा हूं। प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहा हूं, पर अभी तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिली। सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि गुरुकुल के प्रबंधक और जिम्मेदार लोग भी स्थिति स्पष्ट करने से बच रहे हैं। आखिर एक मां-बाप अपने बेटे की सलामती जानने के लिए कहां जाएं?”
परिवार की इस पीड़ा के बीच बेटे अभय की स्थिति और दर्द भी किसी से कम नहीं। महज 15 साल का यह मासूम, जो अब तक मां-पिता की छत्रछाया में था, अचानक अजनबी दुनिया में कहां और कैसे भटक रहा है—सोचकर ही कलेजा कांप उठता है। वह भूखा-प्यासा होगा, डर के साए में जी रहा होगा, किसी अनजान जगह पर सहमा-सहमा बैठा होगा—यह ख्याल ही दिल को झकझोर देता है।
बेटे का रंग सावंला, कद लगभग 5 फीट और सिर पर बाल छोटे हैं। इतना ही पता है, पर उसके ठिकाने की जानकारी किसी के पास नहीं। यह गुमनामी पूरे परिवार को खा रही है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि गुरुकुल और शिक्षा संस्थानों की जिम्मेदारी आखिर कहां है? क्या माता-पिता अपने बच्चों को सुरक्षित मानकर भेजें और फिर इस तरह उन्हें खो दें?
आज यह परिवार प्रशासन से अपील कर रहा है कि उनके बेटे को जल्द से जल्द ढूंढकर वापस लाया जाए। यह केवल एक परिवार का नहीं, बल्कि समाज का दर्द है। जब मां की ममता रोती है और पिता की बेबसी लाचार होती है, तो पूरा समाज उसका भार महसूस करता है।
समय रहते प्रशासन और जिम्मेदार संस्थाएं कदम उठाएं, वरना यह दर्द और गहरा होता जाएगा।





























