बेटी बचाओ” की नारेबाज़ी में गुम सरवन की बेटी! असोहा थाना बना ‘सिफारिश दरबार’ — आरोपी को छोड़ा, अब फरार बेटी लापता, पर पुलिस ‘आशीर्वाद’ खोज रही है, बच्ची नहीं!

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अनुज कुमार वर्मा
ब्यूरो –सिद्धि टुडे, उन्नाव

असोहा/उन्नाव
जब मंच से हमारे माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” की बात करते हैं, तो पूरा प्रदेश तालियां बजाता है। लेकिन जमीनी सच्चाई असोहा थाने के इस मामले ने बेनकाब कर दी है — यहां बेटी का नाम FIR में है, आरोपी का नाम फाइलों में है, और पुलिस की नजरें सिर्फ ‘ऊपर वालों’ के इशारों पर टिकी हैं।

गांव सरवन की 17 साल की बेटी रूपांशी लापता है — और जिस युवक पर अपहरण का सीधा आरोप है, वो थाने से पकड़कर छोड़ा गया। अब वो गायब है।

परिजनों की तहरीर पर नामजद आरोपी शिवम पुत्र जयलाल को पुलिस ने हिरासत में लिया था। लेकिन यह गिरफ्तारी कानून के तहत नहीं, ‘तथाकथित दबाव’ के अधीन हुई प्रक्रिया बनकर रह गई।
सूत्रों की मानें तो थाना असोहा में एक फोन आया — और कानून बगलें झांकने लगा। शिवम को छोड़ा गया।

अब बड़ा सवाल —
वो फोन किसका था? किस नेता या रसूखदार ने आरोपी को बचाने की पैरवी की?

क्या इस मामले में सिर्फ एक युवक नहीं, बल्कि एक पूरी ‘सिस्टम की चेन’ शामिल है?

“थाना हुआ मेहरबान, तो आरोपी हो गया बेईमान”
पुलिस की चुप्पी और परिजनों की व्याकुलता के बीच एक सवाल पूरे ज़ोर से उठ रहा है —
क्या बेटी की तलाश अब भी प्राथमिकता है, या सिफारिश और दबाव की राजनीति ने इंसाफ को ताक पर रख दिया है?

सरवन की सड़कों पर अब आक्रोश है, आँखों में नींद नहीं — सिर्फ़ सवाल हैं।

बेटी कहां है?

आरोपी को पकड़ने में देरी क्यों?

किस बड़े चेहरे ने फोन किया?

“बेटी बचाओ” अब नारा है या सिर्फ पोस्टर की सच्चाई?

गांव के लोग कह रहे हैं — “अगर बेटी सुरक्षित नहीं, तो ये नारे किसके लिए हैं?”

शासन को अब जवाब देना होगा — क्योंकि बेटी की चीख वोट की चुप्पी से बड़ी होती है।

अब सरवन चुप नहीं बैठेगा — गांव में पंचायतें, प्रदर्शन और जन-जागरण शुरू हो चुका है।
बात एक लड़की की नहीं, पूरे सिस्टम की साख की है।

अगर मुख्यमंत्री जी का “बेटी बचाओ” वादा सिर्फ पोस्टरों तक है, तो असोहा थाना उन पोस्टरों की राख बन चुका है।
अब या तो प्रशासन जागेगा — या जनता सवाल पूछना शुरू कर देगी, फिर कोई कुर्सी सवालों से नहीं बचेगी।