इकॉनमी को खतरा किससे ? कोरोना या लॉकडाउन

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पंकज गांधी जायसवाल
वरिष्ठ आर्थिक लेखक – सिद्धि टुडे

कोरोना से पूरी दुनिया परेशान है, भारत भी परेशान है. दूसरी लहर पहली लहर से तेज संक्रामक है और खासकर में महाराष्ट्र और मुंबई में इसका प्रसार तेज है. इन सब के बीच चारो ओर चर्चा है की लॉकडाउन का दौर दुबारा आएगा, हम सब ने 2020 का लॉकडाउन देखा है और उसकी कल्पना मात्र से ही सिहरन आ जाती है . समाचार बहसों में अक्सर यह सवाल सुनने को मिल रहा है की क्या लॉकडाउन से इकॉनमी को खतरा है या कोरोना से. मेरा स्पष्ट मानना है की इकॉनमी को खतरा कोरोना से है लॉकडाउन से नहीं, यह लॉकडाउन इकॉनमी को कोरोना के बृहत्तर प्रभाव से बचाएगी।

देश के सभी संसाधनों में मानवीय संसाधन सबसे सर्वोपरि है. यह मानव ही है जो फैक्ट्रियां, रेस्टॉरेंट मशीनें, कंप्यूटर, बस, कार और जहाज चलाता है यदि मानव जाति ही सुरक्षित नहीं रहेगी तो इन चीजों का महत्त्व और उपभोग कौन करेगा, बिन मानव सब सून हैं, इसलिए मानव जाति को बचाना सबसे जरुरी है. कोरोना के शुरुआती दौर में आपको याद होगा जब चीन के एक डॉक्टर ने इसे पहली बार देखा था तो दहशत में आ गया था और उसने पहली बार पूरी मानव जाति को इससे खतरा बताया था बाद में उसकी मृत्यु हो गई थी. शुरू में आपने देखा होगा की चीन ने भी इसे रोकने की अपने तई भरपूर कोशिश की लेकिन वह भी इसके संक्रमण को रोक नहीं पाया और यह बड़ी तेजी से पूरी दुनिया में फ़ैल गया.

कोरोना लॉकडाउन से भी ज्यादा क्यों खतरनाक है इसके लिये हमें दुनिया में महामारी के इतिहास को देखना पड़ेगा। दुनिया की पहली महामारी 430 ईसा पूर्व में एथेंस में फैली थी और इससे लीबिया, इथियोपिया और मिस्र में करीब दो तिहाई लोगों की मौत हो गई थी । 165 वी ईस्वी में रोम और जर्मनी में एंटोनिन प्लेग महामारी फैली थी जिसे चेचक का प्रारंभिक रूप माना गया था। 541 ईस्वी में फैले जस्टिनियन प्लेग को अब तक के इतिहास में सबसे घातक बीमारी मानी जाती है। यह महामारी मिस्र से शुरू हो तेजी से पूर्वी रोमन साम्राज्य में फैली थी। इस महामारी से लगभग 2.5 से 10 करोड़ लोग मारे गए थे। इस प्लेग ने सम्पूर्ण ज्ञात विश्व की एक चौथाई मानव जनसंख्या से आधी जनसंख्या को समाप्त कर दिया था । 14वीं शताब्दी के दौरान ब्लैक डेथ नामक महामारी का असर यूरोप और एशिया जैसे बड़े महाद्वीपों में रहा। ब्लैक डेथ से सबसे ज्यादा नुकसान मानव आबादी को हुआ और अनुमान के मुताबिक ब्लैक डेथ से लगभग 7.5 करोड़ से लेकर 20 करोड़ लोग मारे गए थे।। इस महामारी से चीन, भारत, सीरिया और मिस्र काफी ज्यादा प्रभावित हुआ था और इसकी वजह से यूरोप की लगभग 50 फीसद आबादी और दुनिया की एक तिहाई आबादी खत्म हो गई थी। सन 1665 का बुबोनिक प्लेग, इस महामारी की वजह से लंदन की 20 फीसदी आबादी खत्म हो गई थी। इसके तीन दौर में करीब 20 करोड़ लोगों की जान गई थी। सन 1855 में फिर से प्लेग महामारी की शुरुआत चीन से शुरू हुई । भारत में इस वायरस के कारण सबसे अधिक मौतें हुईं , जबकि पूरी दुनिया में इस बीमारी से 1.5 करोड़ से अधिक लोगों की जान गई। सन 1918- स्पैनिश फ्लू फैला था इस महामारी के कारण 1918 में पांच करोड़ लोगों की जान गई थी। इसकी शुरुआत यूरोप से हुई थी, बाद में धीरे-धीरे यह अमेरिका और एशियाई देशों में भी फैल गई। इसके अलावा भारत में भी स्पैनिश फ्लू का कहर देखने को मिला था। देश में उस समय इस महामारी से लगभग 1.7 से 1.8 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। सन 1957 में एशियन फ्लू की शुरुआत हांगकांग से हुई थी और देखते-देखते यह पूरे चीन में फैल गया था। इसके बाद यह अमेरिका और इंग्लैंड भी पहुंचा जिसकी वजह से छह महीने के अंदर 14,000 लोग मारे गए। 1958 की शुरुआत तक पूरी दुनिया में 11 लाख लोगों की मौत हुई थी जिनमे से सिर्फ अमेरिका में 1,16,000 मौतें हुई थी। चेचक के भयानक प्रकोप के कई दौर, इंसान देख चुका है. इस महामारी के क़हर का जो सबसे पुराना रिकॉर्ड हमें दस्तावेज़ों में मिलता है, वो वर्ष 1520 का है, प्लेग की ही तरह चेचक की महामारी भी करोड़ों लोगों को मार चुकी है. अकेले बीसवीं सदी में ही इस बीमारी से 20 करोड़ से ज़्यादा लोगों की मौत होने का अंदाज़ा लगाया जाता है, और कुल 35 करोड़ लोगों मौत लेकिन अब इस बीमारी से किसी की मौत नहीं होती, सन 1796 में ब्रिटेन के डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने इस बीमारी की वैक्सीन ईजाद कर ली. इसके अलावा, वैज्ञानिक समुदाय की अन्य कोशिशों के चलते चेचक की बीमारी पर पूरी तरह से क़ाबू पा लिया गया. लेकिन, इंसान को इस महामारी पर क़ाबू पाने में लगभग दो सदियां लग गईं। हैजा की बीमारी ने कई बार मानवता पर क़हर बरपाया है. हैजा की बीमारी कम से कम सात बार महामारी का रूप ले कर इंसानों पर क़हर बरपा चुकी है और लगभग 4 करोड़ लोग इससे काल कवलित हो चुके हैं. कुछ लोगों का मानना है की पृथ्वी से डायनासोर का विलुप्त होना हो या अचानक से प्राचीन सभ्यताओं का ख़त्म होना और उनके नगरों का अवशेष मिलने का एक कारण उनकी मृत्यु महामारी से हुई है. हम आज भी देखते हैं की फसल में कीड़ा लगता है तो पूरा का पूरा खेत बरबाद हो जाता है.

उपरोक्त से तो यह ज्ञात लग गया होगा की सरकार और दुनिया वायरस को लेकर इतना गंभीर क्यों है, क्यों की इनके पास पुराना ज्ञात इतिहास है और वह नहीं चाहती की इस इतिहास की पुनरावृत्ति हो. दुनिया और हम करोड़ों की या अपनों की मृत्यु से सम्भल नहीं सकते। इसलिए सबसे अधिक प्राथमिकता आबादी बचाने की है. जिनका यह तर्क की लॉकडाउन से अधिक मृत्यु हो जाएगी उन्हें यह जान लेना चाहिए की लॉकडाउन से अधिक मृत्यु को रोका जा सकता है, यह संक्रामक रोग है और संक्रमण दवाई से और कम मेलजोल से ही रोका जा सकता है. आबादी में स्वअनुशासन नहीं दिख रहा है इसलिए सरकार मजबूर हो रही है लॉकडाउन लगाने के लिए. और हां हमें यह जानना चाहिए की यह 2020 वाला लॉकडाउन नहीं होगा। आज हमारे पास लॉकडाउन और कोरोना दोनों का अनुभव और उसकी तस्वीर सामने है, कितना प्रतिबन्ध कारगर होगा उसका भी डाटा आ गया है अतः यह 2020 वाला लॉकडाउन तो बिलकुल नहीं होगा, यह नया लॉकडाउन होगा, माइक्रो कन्टेनमेंट जोन बनाये जायेंगे और इस बार सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति अपनाई जाएगी जिससे जितने काम धंधे और कारखाने चल सकते हैं उतने चलेंगे, सबने कोरोना लिविंग और वर्किंग दोनों प्रैक्टिस विकसित कर ली है. सरकार उन सेक्टरों की भी बेहतर ढंग से अब पहचान कर उन्हें लक्षित राहत दे पायेगी जो इससे सबसे ज्यादे प्रभावित होंगे जैसे दिहाड़ी मजदूर या कमाने वाले, स्कूलों के ट्रांसपोर्ट वाले एवं अन्य दैनिक कमाई वाले।जान को जहान के उपर प्राथमिकता को हम सार्वजनिक हित में निवेश कह सकते हैं जिससे सबसे बड़ा रिटर्न या बचत वह होगी की हम इकॉनमी के सभी इंजन को चलाने वाले ड्राइवर मानवीय संसाधन को बचा ले गए.