योगी सरकार भले ही भूमाफियाओं और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दे रही हो, लेकिन उन्नाव में सिंचाई विभाग इन निर्देशों को कूड़ेदान में डाल चुका है। शारदा नहर की कीमती सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा कर बनाई गई दुकानों को लेकर स्थानीय निवासी वर्षों से गुहार लगा रहे हैं, पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
मामला माखी थाना क्षेत्र के ग्राम हिंदूखेड़ा का है, जहां रामशंकर नामक व्यक्ति और उनके पुत्रों ने शारदा नहर की सरकारी भूमि पर कब्जा कर पक्की दुकानें बना ली हैं। इस अतिक्रमण की कई बार शिकायत की गई। प्रार्थी आयुष पांडे और रानी पांडे ने उच्चाधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री पोर्टल तक दर्जनों बार पत्राचार किया। परिणामस्वरूप उपजिलाधिकारी व जिलाधिकारी द्वारा जांच करवाई गई, जिसमें साफ तौर पर पाया गया कि निर्माण कार्य सिंचाई विभाग की भूमि पर हुआ है।
चौंकाने वाली बात यह है कि इतने स्पष्ट प्रमाणों के बावजूद अब तक कोई भी प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई है।
बल्कि उल्टे, अतिक्रमणकारियों ने ही विभागीय अधिकारियों और जिलाधिकारी को फर्जी मुकदमे में फंसा दिया। आश्चर्यजनक रूप से सिंचाई विभाग अब उन्हीं मुकदमों को ढाल बनाकर अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई से पल्ला झाड़ रहा है।
प्रार्थी का आरोप है कि विभागीय अधिकारियों और अतिक्रमणकारियों की मिलीभगत के चलते वर्षों से ये मामला केवल फाइलों में घूम रहा है। विभाग न केवल फर्जी मुकदमों को चुनौती देने में नाकाम रहा, बल्कि शिकायतकर्ता परिवार को भी लगातार टहला रहा है। परिणामस्वरूप, अब अतिक्रमणकारी खुलेआम धमकियां दे रहे हैं और शिकायतकर्ता के परिवार पर जानलेवा हमले की आशंका बनी हुई है।
प्रशासनिक चुप्पी और विभागीय उदासीनता ने इस पूरे प्रकरण को गंभीर बना दिया है।
यह सिर्फ एक सरकारी जमीन पर कब्जे का मामला नहीं है, यह उस तंत्र की नाकामी है जो योगी सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति की खुलेआम अवहेलना कर रहा है। सवाल यह है कि जब जांच में सब कुछ स्पष्ट है तो कार्रवाई में देरी क्यों?
अब सवाल उठता है:
क्या भूमाफियाओं को सरकार का डर नहीं बचा?
क्या फर्जी मुकदमे अब सरकारी कार्रवाई रोकने का नया हथियार बन चुके हैं?
क्या विभागीय अफसर अतिक्रमण के संरक्षणदाता बन चुके हैं?
यदि शासन-प्रशासन ने जल्द हस्तक्षेप नहीं किया, तो यह मामला जन आक्रोश का रूप ले सकता है।