सन्दीप मिश्रा
सिद्धि संवाददाता रायबरेली
रायबरेली जिले में इन दोनों पत्रकारों की फौज पुलिस कार्यालय से लेकर जिला अस्पताल तक दिखाई देती है। मजेदार बात यह है कि जहां एक आईपीएस अधिकारी पीसीएस अधिकारी अपने नियम कानून से काम करता है जिससे की जनता का भला हो सके । लेकिन बीते दो-तीन सालों में देखा जा रहा है कि अनपढ़ जाहिल पत्रकार जिन्हें की खुद अपना नाम और मोबाइल नंबर पेन पेंसिल से लिखना नहीं आता आज वह अपने आप को पत्रकार बताकर इन अधिकारियों के साथ बहस करते हैं उनके आदेशों की अवहेलना करते हुए अनर्गल खबर चलकर खुद आई एस और पीसीएस अधिकारियों की छवि धूमिल करते हैं। कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया के जमाने में इस तरह के पत्रकारों की भरमार हो गई है । जिन्हें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को छोड़कर अन्य तीन स्तंभों की जानकारी भी नहीं है। लेकिन पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पहुंचकर पीड़ितों से 100 200 ₹500 लेकर मनमानी खबरों को प्रकाशित कर देते हैं साथ ही साथ अधिकारियों की खबर में फजीहत भी कर देते हैं क्योंकि लिखना आता नहीं है परंतु 10 ,15, 20 हजार रुपए के मोबाइल सेट लेकर उसे पर वॉइस टाइपिंग से अपना काम चला रहे हैं। अब तो फरियादी भी कहने लगे हैं कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पत्रकारों की खुली दलाली चल रही है। यही कारण है कि पत्रकारों की पुलिस अधीक्षक कार्यालय में वसूली करते-करते आदत इस कदर बिगड़ गई है कि अब आम जनता से भी वसूली करना शुरू कर दिया है और यही कारण है कि तमाम पत्रकारों के वीडियो और उनकी शिकायतें खुद पुलिस अधीक्षक कार्यालय में दर्ज है। कि उन्होंने पैसों की वसूली की है लेकिन पुलिस भी इन पत्रकारों को असली पत्र का समझ कर किनारा कर लेती है और पीड़ित को समझा बुझा कर भेज देती है। पत्रकारों की यही करतूतो के चलते जो ईमानदार और सच्चे कलम के सिपाही पत्रकार हैं। उनकी कलम कहीं ना कहीं गायब दिखाई देती है। अब तो हाल यह हो गया है कि ईमानदार पत्रकार खुद अपने आप को पत्रकार बताना भी बंद कर दिए हैं। क्योंकि उनका साफ कहना है कि अनपढ़ जाहिल पत्रकारों ने इस कदर पत्रकारिता को गर्त मिला दिया है की पत्रकार ही बताने में शर्म आती है। तमाम वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि यदि पुलिस अधीक्षक कार्यालय में ही उपस्थित पत्रकारों की शिक्षा का हिसाब किताब ले लिया जाए तो कुछ ऐसे भी पत्रकार हैं जिन्होंने स्कूल का कभी मुंह भी नहीं देखा है और आज कलम के कलमकार बने हुए हैं। जनता कभी कहना है कि असली पत्रकार कौन है और नकली कौन है इसकी तो पहचान ही नहीं हो पाती है । बस एक माइक आईडी हाथ में लेकर यह अनपढ़ जाहिल पत्रकार अच्छे अच्छे अधिकारियों को अपने मकड़जाल में फंसा लेते हैं । वरिष्ठ पत्रकारों ने जिला निर्वाचन अधिकारी और पुलिस अधीक्षक से इस तरह के पत्रकारों पर कार्यवाही करने की मांग की है।