लखनऊ विश्वविद्यालय विधिक सहायता केंद्र

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सिद्धि संवाददाता – लखनऊ

लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठित संस्था विधिक सहायता केंद्र एवं आंतरिक शिकायत समिति लखनऊ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में 12 मई को विधि संकाय लखनऊ विश्वविद्यालय में लैंगिक संवेदीकरण के विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर श्रीमती प्रज्ञामति गुप्ता(अधिवक्ता,इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं सदस्य,आंतरिक शिकायत समिति,लखनऊ विश्वविद्यालय एवं मधु यादव(अधिवक्ता, लखनऊ विश्वविद्यालय) मौजूद रहे।कार्यशाला का उद्घाटन कृतिका सिंह द्वारा अतिथियों का स्वागत कर कार्यशाला का संक्षिप्त विवरण तथा विधिक सहायता केंद्र के उद्देश्य,लक्ष्य एवं कार्यशैली के बारे मे बता कर किया गया।

तत्पश्चात विधिक सहायता केंद्र के सदस्यों द्वारा विश्वविद्यालय के कुल गीत की प्रस्तुति दी गई।तदुपरांत विधि संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर डॉ सीपी सिंह ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति एवं विकास पर जोर देते हुए कहा कि किसी भी सामाजिक बदलाव का आरंभ व्यक्तिगत बदलाव से ही होता है। उन्होंने विभिन्न लिंगों के प्रति बन चुकी रूढ़िवादी सोच को हटाने का भी आवाहन किया।

 

कार्यशाला दो भागों में विभाजित थी जिसमें पहला भाग लैंगिक संवेदीकरण एवं दूसरा भाग कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संबंधित रहाl कार्यशाला के पहले चरण की शुरुआत अनादि तिवारी द्वारा कुछ चल चित्रों को प्रस्तुत करके किया गया जिनमें सभी लिंगो के प्रति बन चुकी सामाजिक रूढ़िवादी सोच को प्रदर्शित किया गयाl दर्शकों से चलचित्रों के संबंध में सवाल भी किये कि युवा पीढ़ी की लैंगिक समानता के लक्ष्य को पाने में क्या जिम्मेदारी हो सकती है। संविधान के अनुच्छेद 14 का विवरण देते विधि के समक्ष समता के अधिकार के बारे मे जानकारी दीl

 

तत्पश्चात अमन कुमार द्वारा ट्रांसजेंडर लोगों की सामाजिक स्थिति के बारे में वर्णन किया गया एवं बताया गया कि किस तरह उनको जन्म के पश्चात ही समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है एवं बहुत सारी रूढ़िवादी परंपराओं में बांध दिया जाता है जिसके कारण वह अपना जीवन सामान्य रूप से नहीं जी पाते हैं।

 

तत्पश्चात अनुपम गुप्ता द्वारा लैंगिक संवेदीकरण को ध्यान में रखकर बनाए गए कुछ संवैधानिक अधिनियम के बारे में बताएं गया जिनमें समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 एवं मासिक धर्म लाभ विधेयक 2018 शुमार हैं।

कार्यशाला के दूसरे चरण की शुरुआत करते हुए अनादि तिवारी ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संबंधित एक चलचित्र प्रस्तुत किया एवं दर्शकों की राय ली। उन्होंने महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष)अधिनियम,2013 दिए गए सभी प्रावधानों का संक्षिप्त विवरण दिया। उन्होंने भंवरी देवी केस का मार्मिक विवरण दिया एवं विशाखा निर्देशों के बारे में बताया जो कि आगे चलकर इस अधिनियम का आधार बना। उन्होंने अधिनियम में दिए गए कार्यस्थल, पीड़ित महिला,आंतरिक शिकायत समिति, स्थानीय शिकायत समिति,शिकायत दर्ज करने का तरीका आदि के बारे में बताया।

 

तत्पश्चात कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती प्रज्ञामती गुप्ता को आमंत्रित किया गया, उन्होंने बताया कि वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी थी लेकिन समय के साथ-साथ उनकी स्थिति खराब होती चली गई। उन्होंने यह भी बताया कि 1916 से पहले महिलाओं के पास वकालत का अधिकार नहीं था और रेगीना गुहा नामक महिला के बारे बारे में बताया जिन्होंने इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि आजादी के 73 साल बाद भी आज तक कोई महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं बनी हैl लखनऊ विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति की सदस्य होने के नाते उन्होंने सभी दर्शक गणों एवं अतिथियों को शिकायत दर्ज करने के तरीके एवं उसके निस्तारण की विस्तृत जानकारी दी।

 

तत्पश्चात डॉ प्रतीक सेठ द्वारा बताया गया कि मनु स्मृति में महिलाओं को लेकर एक विरोधी सोच का वर्णन किया गया है। उन्होंने कहा कि ” समाज में लड़का होना भाग्य की बात है लेकिन लड़की होना सौभाग्य की बात है।”

 

कार्यक्रम को समाप्ति की ओर ले जाते हुए देवेश यादव द्वारा एक मनमोहक संगीत की प्रस्तुति दी गई।

 

कार्यक्रम को समाप्त करते हुए अजीत कुमार द्वारा सभी मौजूद अतिथि गणों एवं दर्शक गणों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया।